Khabare Taza

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित प्रसिद्ध बाँके बिहारी मंदिर में एक ऐतिहासिक घटना हुई है। मंदिर के गर्भगृह के सामने स्थित खज़ाना-कमरा, जिसे सामान्यतः “तोषखाना”(जिसे अक्सर “तोषखाना” कहा जाता है, लगभग 54 वर्षों के बाद खोला गया है। इसका उद्घाटन 18 अक्टूबर 2025 को धनतेरस के पावन अवसर पर किया गया।

क्यों बंद था यह कमरा :

सूत्रों के अनुसार, यह कमरा 1971 में सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया गया था। उस समय मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं थी, जिससे दैनिक पूजा-अर्चना में उपयोग होने वाली वस्तुओं के संरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई, इसलिए इस कमरे का दरवाजा बंद किया गया।

कहा जाता है कि इसमें धार्मिक वस्तुएँ, तांबे और चांदी के बर्तन, कलश, आभूषण और अन्य सामग्री रखी गई थीं।

क्या मिला अंदर :

कमरे के निरीक्षण के दौरान जो जानकारी प्राप्त हुई, उसके आधार पर:

प्रारंभिक जांच पहले चरण में लगभग चार से पांच घंटे तक चली।

इस दौरान एक तिजोरी, (सुरक्षित बक्सा)दो बक्से, कुछ लकड़ी की संरचनाएँ और बर्तन मिले।

कमरे की स्थिति काफी दयनीय थी; यहाँ काफी मात्रा में धूल-मिट्टी थी, पानी जमा था, और चूहे भी नजर आए।

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सोने और चाँदी के कीमती आभूषणों या सिक्कों की मात्रा कितनी है; आगे की जांच जारी है।

प्रशासनिक व्यवस्था व सुरक्षा :

इस प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई पावर कमेटी का गठन किया, जिसने कमरे को खोलने का निर्देश दिया।

कमरा खोलने के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे—स्नेक कैचर टीम, ऑक्सीजन सिलेंडर और मास्क आदि का उपयोग किया गया, क्योंकि यह माना जा रहा था कि कमरे में सांप या विषैला गैस हो सकता है।

मीडिया को कमरे में सीधे प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई; पहले सफाई और सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी, उसके बाद ही सामग्री को सार्वजनिक किया जाएगा।

धार्मिक-सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व :

इस घटना को धार्मिक अनुयायियों के बीच काफी रुचि से देखा जा रहा है, क्योंकि यह मंदिर के अज्ञात इतिहास का एक महत्वपूर्ण खुलासा है।

“खज़ाना” शब्द आकर्षक होता है, लेकिन यह धार्मिक सेवा से संबंधित सामग्री भी हो सकती है, जिसका उपयोग भगवान के दिनचर्या में किया जाता था।

स्थानीय सेवायत और गोस्वामी समाज ने इस प्रक्रिया के प्रति कई प्रश्न उठाए हैं, जैसे प्रक्रिया में पारदर्शिता और उनकी सहभागिता के बारे में।

आगे क्या होगा :

कमरा खोलने का यह पहला चरण है। भविष्य में तहखाने(बेसमेंट) की अन्य कक्षाओं का भी निरीक्षण किया जा सकता है।

साफ-सफाई और निरीक्षण के बाद, सामग्री को श्रद्धालुओं और मीडिया के समक्ष पेश किया जाएगा।

प्रशासन ने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी सामग्री को हटाने से पहले धार्मिक संस्कृति और नियमों का ध्यान रखा जाएगा।

निष्कर्ष :

यह 54 वर्षीय प्रतीक्षा के बाद खुलने वाला खज़ाना-कमरा मात्र एक तहखाना खोलने की घटना नहीं है, बल्कि यह धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह एक ओर मंदिर की सेवा, संपत्तियों और परंपराओं को उजागर करता है, तो दूसरी ओर प्रशासन, समाज और धार्मिक प्रबंधन के बीच पारदर्शिता और भागीदारी के मुद्दों पर प्रश्न उठ रहे है।

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